गुरु महिमा :- केवटियो म्हाने मिल गयो जी , कर दियो भव से पार ।
दोहा :-- नदियां बहु गहरी मिली , पड्यो भंवर मंझार ।
चतुराई म्हारा केवट की , म्हाने कर दियो परली पार ।।
कर दियो परली पार , पायो प्रेम पदारथ पासा ।
सत चित आनन्द रुप पायो , सोहन शिखर गढ़ वासा ।।
टेर:-केवटियो म्हानै मिल गयो जी ,कर दियो भव से पार ।।
कर दियो भव से पार , म्हाने मिल गयो सिरजन हार।।
(1) :-सत्य स्वरूपी केवट मिल गयो , दियो शबद पतवार ।
शब्द गिगन में गिरजन लाग्या , अनहद हुई झनकार ।।
(2) :-अनहद गरजै ज्योती चमके , छाई गगन घटा इकसार ।
इमरत बूंदा बरसण लागी , नित नित नई फुंहार ।।
(3):-पार ब्रहम रो भेद बतायो , खोल्यो दशवों द्वार ।
हंसा मोती चुगणै लाग्या , मान सोरावर मझधार ।।
(4):-सोहन शिखर गढ़ प्रीतम मेरा , बैठ्या आसन मार ।
आवागमन की मिटी कल्पना , पाया मोक्ष द्वार ।।
(5):-नेकीराम जी गुरु समझावें , सतपुरूषां रा सार ।
दास महेन्द्र महिमा गावै , गावै मंगला चार ।।।।।।।
ईतिश्री
चतुराई म्हारा केवट की , म्हाने कर दियो परली पार ।।
कर दियो परली पार , पायो प्रेम पदारथ पासा ।
सत चित आनन्द रुप पायो , सोहन शिखर गढ़ वासा ।।
टेर:-केवटियो म्हानै मिल गयो जी ,कर दियो भव से पार ।।
कर दियो भव से पार , म्हाने मिल गयो सिरजन हार।।
(1) :-सत्य स्वरूपी केवट मिल गयो , दियो शबद पतवार ।
शब्द गिगन में गिरजन लाग्या , अनहद हुई झनकार ।।
(2) :-अनहद गरजै ज्योती चमके , छाई गगन घटा इकसार ।
इमरत बूंदा बरसण लागी , नित नित नई फुंहार ।।
(3):-पार ब्रहम रो भेद बतायो , खोल्यो दशवों द्वार ।
हंसा मोती चुगणै लाग्या , मान सोरावर मझधार ।।
(4):-सोहन शिखर गढ़ प्रीतम मेरा , बैठ्या आसन मार ।
आवागमन की मिटी कल्पना , पाया मोक्ष द्वार ।।
(5):-नेकीराम जी गुरु समझावें , सतपुरूषां रा सार ।
दास महेन्द्र महिमा गावै , गावै मंगला चार ।।।।।।।
ईतिश्री
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