रचना भजन
टेर :- ऐसा ऐसा भेद बताया मेरे गुरू ने , ऐसा ऐसा भेद बताया है ।।
अवगत से चल आया अविनाशी , काल कला में आया हैं।।
(1):- शब्द से रूप रुप से रस , रस से गंध बनाया है ।
इन चारों की व्यापकता से स्पर्श सामने आया है ।।
(2):- बीज गुणो की हुई उत्पति , ज्यांसे तत्व बनाया है ।
अष्ट कंवल की रचना कीन्ही , तांपर भंवर बिठाया है ।।
(3):- कर्ता कर्म की करी उत्पति , खुद अकर्म कहाया है ।
चार वाणी प्रकट कीनी , ख़ुद से खुद बतलाया है ।।
(4):- वाणी से विचार जो आया , ज्ञान पिता कहाया है ।
सत् असत् की रचना कीन्ही , शुद्ध चेतन ठहराया है ।।
(5):- दया से धर्म धर्म से संगत, शील से संतोष बनाया है।
जांके ह्रिदय संतोष समाता , वो ही संत कहाया है ।।
(6):- मन वाणी इंद्रियों से अगोचर , कर्ता आप कहाया है ।
नेकी राम जी गुरु हमारे , दास महेन्द्र कथ गाया है ।।
अवगत से चल आया अविनाशी , काल कला में आया हैं।।
(1):- शब्द से रूप रुप से रस , रस से गंध बनाया है ।
इन चारों की व्यापकता से स्पर्श सामने आया है ।।
(2):- बीज गुणो की हुई उत्पति , ज्यांसे तत्व बनाया है ।
अष्ट कंवल की रचना कीन्ही , तांपर भंवर बिठाया है ।।
(3):- कर्ता कर्म की करी उत्पति , खुद अकर्म कहाया है ।
चार वाणी प्रकट कीनी , ख़ुद से खुद बतलाया है ।।
(4):- वाणी से विचार जो आया , ज्ञान पिता कहाया है ।
सत् असत् की रचना कीन्ही , शुद्ध चेतन ठहराया है ।।
(5):- दया से धर्म धर्म से संगत, शील से संतोष बनाया है।
जांके ह्रिदय संतोष समाता , वो ही संत कहाया है ।।
(6):- मन वाणी इंद्रियों से अगोचर , कर्ता आप कहाया है ।
नेकी राम जी गुरु हमारे , दास महेन्द्र कथ गाया है ।।
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