थारी महिमा सबसे न्यारी - भजन



दोहा - सतसंग समान कोई तीर्थ नाही, नाही व्रत उपवास ।
      सतसंग तो भव पार करती , करती विघ्न का नाश ।।
      करती विघ्न का नाश , मिलन करावे ईश्वर से ।
      हो जासी भव पार साधौ , ईं संसारी नश्वर से ।।

टैर  थारी महिमा सबसे न्यारी , म्हारी प्यारी सतसंग ।।
      ओ प्यारी सतसंग , थारी म्हारी सतसंग ।।

1. सतसंग मे है हीरे मोती , नित नित नये नये रंग ।
     शील संतोष दया औऱ क्षमा , ग्यान भी मिलता संग ।।
2. सतसंग सम कोई तीर्थ नाही , सतसंग जल की तरंग ।
     पापी नुगरा पार हो जावे , कर ले जो भी संग  ।।
3.  सतसंग है  भव जल पारा , उलटि चढै गगन ।
     गगन मंडल मे  पिया बसत है , मिलज्या वाको संग ।।
4.  सतसंग से भव पार होज्या , मिट्ज्या आवागमन ।
     काल बलि का पासा हट्ज्या , हो जावे आनन्द ।।
5.  नैकी राम जी गुरु समझावै , कर सतसंगत का संग ।
     सतसंग महिमा महेंद्र गावे , भर भर दिल मे उमंग ।।
     

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